सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization), जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, प्राचीन भारत की एक प्रमुख सभ्यता थी। यह सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में रही और आधुनिक पाकिस्तान, भारत और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में फैली हुई थी।
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना अद्वितीय और व्यवस्थित थी। यहां के शहरों जैसे हरप्पा और मोहनजोदड़ो में चौड़ी और सीधी सड़कों का निर्माण किया गया था, जो ग्रिड प्रणाली पर आधारित थे। घर पक्की ईंटों से बनाए गए थे और बहुमंजिला भी थे। जल निकासी व्यवस्था इतनी उन्नत थी कि हर घर से गंदा पानी नालियों के माध्यम से मुख्य नाले में जाता था। शहरों में बड़े स्नानागार (ग्रेट बाथ), अनाज भंडार और सभा भवन जैसे सार्वजनिक स्थान भी थे। यह सभी सुविधाएं यह दर्शाती हैं कि यहां के लोग शहरी जीवन में अनुशासन और स्वच्छता के महत्व को समझते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी, और यहां के लोग सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी का कुशलता से उपयोग करते थे। सिंचाई के लिए नहरों और तालाबों का निर्माण किया गया था। गेहूं, जौ, राई, तिल, कपास और चावल जैसी फसलें यहां उगाई जाती थीं। कपास की खेती में सिंधु घाटी सभ्यता अग्रणी थी, जिससे यह दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता बनती है जिसने कपड़ा उत्पादन में महारत हासिल की। कृषि कार्य के लिए धातु और पत्थर के औजारों का प्रयोग किया जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता व्यापार और वाणिज्य में अत्यधिक विकसित थी। स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दोनों का प्रचलन था। व्यापारी कपड़ा, मणि, तांबा, सोना, चांदी और मिट्टी के बर्तन जैसी वस्तुएं मेसोपोटामिया और फारस की सभ्यताओं तक निर्यात करते थे। व्यापार के लिए जलमार्ग और स्थलमार्ग दोनों का उपयोग किया जाता था। लोथल बंदरगाह इस सभ्यता के समुद्री व्यापार का प्रमुख केंद्र था। मृदभांड, वजन और माप प्रणाली के विकसित रूप व्यापार की सटीकता को दर्शाते हैं।
सिंधु घाटी के लोग धर्म और संस्कृति के प्रति गहरी आस्था रखते थे। पुरातात्विक खोजों से पीपल के वृक्ष, शिवलिंग जैसे प्रतीक और मातृ देवी की मूर्तियां मिली हैं, जो इनके धार्मिक विश्वासों को दर्शाते हैं। पशुपति महादेव की मुहर इस बात की ओर संकेत करती है कि यहां के लोग शिव की आराधना करते थे। यह लोग प्रकृति पूजा में विश्वास रखते थे और सांड को पवित्र मानते थे। धार्मिक स्थलों और अनुष्ठानों से संबंधित संरचनाएं यहां की सांस्कृतिक समृद्धि को उजागर करती हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि चित्रलिपि (pictographic script) थी, जिसमें संकेत और प्रतीक का प्रयोग किया जाता था। यह लिपि विभिन्न मुहरों, बर्तनों और अन्य वस्तुओं पर पाई गई है। अब तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, लेकिन यह माना जाता है कि इसे व्यापार और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाता था। लिपि की जटिलता यह दर्शाती है कि यह एक उच्च विकसित और साक्षर समाज था।
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों में हरप्पा और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान), कालीबंगन और धोलावीरा (भारत) शामिल हैं। हर स्थल की अपनी विशेषता है। मोहनजोदड़ो अपने विशाल स्नानागार और अनाज भंडार के लिए प्रसिद्ध है, जबकि लोथल अपने बंदरगाह और व्यापार केंद्र के रूप में जाना जाता है। कालीबंगन में जले हुए अनाज और कृषि के अवशेष मिले हैं, जो यहां के कृषि कार्य को दर्शाते हैं। धोलावीरा अपनी जल प्रबंधन प्रणाली और विशाल सभागारों के लिए प्रसिद्ध है।
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उन्नत थे। उन्होंने पक्की ईंटों, नालियों और कुओं का निर्माण किया। यह लोग धातुओं जैसे तांबा, कांसा और सीसा का प्रयोग उपकरण बनाने में करते थे। मृदभांड बनाने की कला भी उन्नत थी। जल प्रबंधन, नहर प्रणाली और विशाल स्नानागार यह दर्शाते हैं कि यह लोग जल विज्ञान में भी विशेषज्ञ थे।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन कई कारणों से हुआ। जलवायु परिवर्तन के कारण सिंधु नदी का प्रवाह बदल गया, जिससे बाढ़ और सूखे की स्थिति पैदा हुई। इसके अलावा, कृषि योग्य भूमि की कमी और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन भी पतन के मुख्य कारण थे। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि आर्यों के आक्रमण ने इस सभ्यता को समाप्त करने में योगदान दिया। हालांकि, इसका पतन धीरे-धीरे हुआ और इसे किसी एक घटना का परिणाम नहीं कहा जा सकता।
यह सभ्यता प्राचीन काल में मानव समाज के उन्नत विकास और नगर सभ्यता के उदाहरण के रूप में जानी जाती है।
भारत की वैदिक संस्कृति, जिसे आर्य संस्कृति भी कहा जाता है, भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह संस्कृति वैदिक काल (1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व) में विकसित हुई और इसका आधार चार वेदों – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद – पर आधारित है। वैदिक संस्कृति ने भारतीय समाज, धर्म, दर्शन, साहित्य और विज्ञान को गहराई से प्रभावित किया है।
वैदिक संस्कृति में बहुदेववाद (Polytheism) का प्रचलन था। सूर्य (सविता), वायु (वायु देवता), अग्नि, इंद्र, वरुण, और यम जैसे प्राकृतिक शक्तियों के देवताओं की पूजा होती थी। यज्ञ और हवन वैदिक धर्म के प्रमुख अनुष्ठान थे, जिनमें अग्नि के माध्यम से देवताओं को प्रसन्न किया जाता था। ऋग्वेद में वर्णित मंत्रों का प्रयोग अनुष्ठानों में किया जाता था। यह यज्ञ कृषि, वर्षा, धन और परिवार की समृद्धि के लिए किए जाते थे।
वैदिक समाज मुख्य रूप से ग्रामीण और कृषि आधारित था। समाज चार वर्णों में विभाजित था:
वैदिक काल में शिक्षा का उद्देश्य नैतिकता, धर्म और ज्ञान का विकास था। गुरु-शिष्य परंपरा के तहत शिक्षा दी जाती थी। गुरुकुल में विद्यार्थी वेद, दर्शन, गणित, खगोलशास्त्र, धनुर्विद्या और चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त करते थे। संस्कृत भाषा इस काल की प्रमुख भाषा थी, और वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ और आरण्यक इस युग के ज्ञान का भंडार हैं।
वैदिक समाज की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी। कृषि के साथ-साथ गायों का पालन एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि थी। गायों को धन का प्रतीक माना जाता था। व्यापार और वाणिज्य भी विकसित था, जिसमें वस्तु-विनिमय (Barter System) प्रचलित था। इस काल में धातु कार्य और हस्तशिल्प का विकास हुआ।
परिवार को समाज की आधारभूत इकाई माना जाता था। वैदिक काल में परिवार पितृसत्तात्मक (Patriarchal) था, लेकिन महिलाओं को भी सम्मानित स्थान प्राप्त था। वे शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग ले सकती थीं। प्रारंभिक वैदिक काल में महिलाओं को स्वतंत्रता और समान अधिकार प्राप्त थे, लेकिन उत्तर वैदिक काल में उनकी स्थिति में गिरावट आई।
वैदिक काल में खगोलशास्त्र, गणित और चिकित्सा का अच्छा ज्ञान था। वैदिक साहित्य में ग्रहों, नक्षत्रों और सौर मंडल का उल्लेख मिलता है। आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली का प्रारंभिक स्वरूप इस युग में विकसित हुआ। धातु विज्ञान और उपकरण निर्माण में भी यह काल उन्नत था।
वैदिक काल के साहित्य का आधार वेद थे। वेदों में मंत्र, स्तुतियां और उपदेश शामिल थे। सामवेद में संगीत का वर्णन मिलता है और इसे भारतीय शास्त्रीय संगीत का आधार माना जाता है। ऋग्वेद में प्राकृतिक सौंदर्य, मानव जीवन और ब्रह्मांड के रहस्यों का उल्लेख है।
वैदिक संस्कृति ने धर्म और दर्शन के क्षेत्र में गहरी छाप छोड़ी। वेदांत और उपनिषदों में ब्रह्म (सर्वोच्च सत्य) और आत्मा (आत्मा का ज्ञान) पर चर्चा की गई। यज्ञ और कर्मकांडों के साथ-साथ ध्यान और योग का भी विकास हुआ। इस काल में मोक्ष और पुनर्जन्म के सिद्धांतों की अवधारणा सामने आई।
वैदिक संस्कृति भारतीय समाज की नींव है, जिसने न केवल धार्मिक और सामाजिक ढांचे को निर्धारित किया, बल्कि ज्ञान-विज्ञान, कला और दर्शन को भी समृद्ध किया। यह संस्कृति आज भी भारतीय परंपराओं और जीवनशैली में झलकती है।
जैन धर्म भारत की सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण धर्म-संप्रदायों में से एक है। इसे "श्रमण परंपरा" का हिस्सा माना जाता है और यह अहिंसा, सत्य और तपस्या पर आधारित एक धार्मिक और दार्शनिक प्रणाली है। जैन धर्म के अनुयायियों को "जैन" कहा जाता है, जो "जिन" शब्द से बना है। "जिन" का अर्थ है "विजेता," अर्थात वे जो अपने मन, कर्म और इच्छाओं पर विजय प्राप्त करते हैं।
जैन धर्म की उत्पत्ति लगभग 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई मानी जाती है, लेकिन इसकी जड़ें प्राचीन वैदिक काल से भी पहले की श्रमण परंपरा में हैं। जैन धर्म के 24 तीर्थंकर हुए, जिन्होंने इस धर्म के मूल सिद्धांतों को प्रचारित किया।
नीचे सभी 24 जैन तीर्थंकरों के नाम और उनके कालक्रम (year-wise) दिए गए हैं। इनमें से प्रत्येक तीर्थंकर ने जैन धर्म के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
क्रम संख्या | तीर्थंकर का नाम | काल (लगभग) | चिह्न (लांछन) |
1. | ऋषभदेव (आदिनाथ) | 8,64,000 वर्ष पूर्व | बैल (बछड़ा) |
2. | अजितनाथ | 7,72,000 वर्ष पूर्व | हाथी |
3. | सम्भवनाथ | 6,84,000 वर्ष पूर्व | घोड़ा |
4. | अभिनन्दननाथ | 5,95,000 वर्ष पूर्व | बंदर |
5. | सुमतिनाथ | 5,12,000 वर्ष पूर्व | कुरंग (हिरण) |
6. | पद्मप्रभु | 4,57,000 वर्ष पूर्व | कमल |
7. | सुपार्श्वनाथ | 3,97,000 वर्ष पूर्व | स्वस्तिक |
8. | चंद्रप्रभु | 3,42,000 वर्ष पूर्व | चंद्रमा |
9. | पुष्पदंत (सुविधिनाथ) | 2,97,000 वर्ष पूर्व | मगरमच्छ |
10. | शीतलनाथ | 2,52,000 वर्ष पूर्व | कल्पवृक्ष |
11. | श्रेयांसनाथ | 2,18,000 वर्ष पूर्व | गैंडा |
12. | वासुपूज्य | 1,95,000 वर्ष पूर्व | भैंसा (भैस) |
13. | विमलनाथ | 1,49,000 वर्ष पूर्व | शूकर (सूअर) |
14. | अनंतनाथ | 1,21,000 वर्ष पूर्व | बाज (गरुड़) |
15. | धर्मनाथ | 98,000 वर्ष पूर्व | वज्र |
16. | शांतिनाथ | 75,000 वर्ष पूर्व | मृग (हिरण) |
17. | कुंथुनाथ | 51,000 वर्ष पूर्व | बकरी |
18. | अरहनाथ | 30,000 वर्ष पूर्व | मछली |
19. | मल्लिनाथ | 6,000 वर्ष पूर्व | कलश |
20. | मुनिसुव्रतनाथ | 4,000 वर्ष पूर्व | कछुआ |
21. | नमिनाथ | 3,000 वर्ष पूर्व | नीलकमल |
22. | नेमिनाथ | 1,200 वर्ष पूर्व | शंख |
23. | पार्श्वनाथ | 877 ईसा पूर्व | सर्प (नाग) |
24. | महावीर स्वामी | 599-527 ईसा पूर्व | सिंह |
कुछ महत्वपूर्ण बातें
जैन धर्म का आधार पाँच मुख्य सिद्धांतों पर है:
जैन धर्म के मुख्य ग्रंथ "आगम" कहलाते हैं। यह तीर्थंकरों की शिक्षाओं पर आधारित हैं।
जैन धर्म का मुख्य सिद्धांत अहिंसा है। जैन धर्मावलंबी सभी प्रकार के जीवों के प्रति दया और करुणा का भाव रखते हैं। यही कारण है कि वे शाकाहार को अपनाते हैं और कृषि व पर्यावरण संरक्षण में योगदान देते हैं। कई जैन लोग जल, हवा और भूमि को भी शुद्ध रखने का प्रयास करते हैं।
तपस्या जैन धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें आत्मा की शुद्धि और कर्मों का क्षय करने के लिए कठिन साधना की जाती है। जैन धर्म में संथारा (स्वेच्छा से भोजन और जल त्यागना) को जीवन के अंतिम क्षणों में मोक्ष प्राप्ति का एक माध्यम माना जाता है।
जैन धर्म के कई प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भारत में हैं:
जैन धर्म ने भारतीय समाज को अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह का संदेश दिया। यह धर्म व्यापार, शिल्प और शिक्षा के क्षेत्र में भी अत्यधिक प्रभावशाली रहा। जैन धर्मावलंबियों ने भारत में कई पुस्तकालय, विद्यालय और धर्मशालाओं का निर्माण कराया। साथ ही, इस धर्म ने भारतीय कला और वास्तुकला को समृद्ध किया।
आज जैन धर्म के अनुयायी मुख्य रूप से भारत में रहते हैं। जैन समुदाय शाकाहार, व्यापार और सामाजिक सेवा के लिए जाना जाता है। वे शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण में भी सक्रिय हैं।
जैन धर्म अपने नैतिक मूल्यों, अहिंसा और आत्मशुद्धि पर बल देने के कारण न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर भी एक अद्वितीय पहचान रखता है।
बौद्ध धर्म भारत में 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में महात्मा बुद्ध (गौतम बुद्ध) द्वारा स्थापित किया गया। यह धर्म अहिंसा, करुणा और मध्यम मार्ग पर आधारित है। बौद्ध धर्म ने न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया को अपनी शिक्षाओं से प्रभावित किया। महात्मा बुद्ध ने जीवन के दुखों और उनके समाधान की खोज के लिए गहन साधना की और अंततः ज्ञान (बोधि) प्राप्त किया।
महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान में नेपाल) में हुआ। उनका असली नाम सिद्धार्थ गौतम था।
बौद्ध धर्म के अनुसार जीवन के चार मूल सत्य (आर्य सत्य) हैं:
बौद्ध धर्म ने दुखों से मुक्ति पाने के लिए आष्टांगिक मार्ग का सुझाव दिया:
बौद्ध धर्म के अनुयायी त्रिरत्न की शरण में जाते हैं:
बौद्ध धर्म भारत में मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल (273-232 ईसा पूर्व) के दौरान सबसे अधिक प्रचारित हुआ।
बौद्ध धर्म के तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं:
भारत में बौद्ध धर्म से जुड़े कई तीर्थ स्थल हैं:
बौद्ध धर्म ने न केवल भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर भी प्रसिद्धि दिलाई। आज यह धर्म शांति और करुणा का प्रतीक है।
भारत के महाजनपद
भारत के प्राचीन इतिहास में महाजनपद शब्द का उपयोग 6वीं से 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान मौजूद प्रमुख राजनीतिक और भौगोलिक राज्यों के लिए किया जाता है। "महाजनपद" का अर्थ है "बड़ा क्षेत्र" या "महान राज्य।" यह काल भारतीय इतिहास में "उत्तर वैदिक युग" और "बौद्धकालीन युग" के नाम से जाना जाता है।
महाजनपदों का विकास छोटे-छोटे जनपदों के संघटन से हुआ। धीरे-धीरे इन जनपदों ने संगठित होकर बड़े राजनीतिक राज्यों का रूप लिया, जिन्हें महाजनपद कहा गया।
महाजनपद | राजधानी | स्थान (आधुनिक क्षेत्र) |
1. अंग | चंपा | बिहार और पश्चिम बंगाल |
2. मगध | राजगृह, पाटलिपुत्र | बिहार |
3. वज्जि (वृजि) | वैशाली | उत्तरी बिहार |
4. मल्ल | कुशीनगर, पावा | उत्तर प्रदेश |
5. काशी | वाराणसी | उत्तर प्रदेश |
6. कोशल | श्रावस्ती | उत्तर प्रदेश |
7. वत्स | कौशांबी | उत्तर प्रदेश |
8. कुरु | इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर | दिल्ली और हरियाणा |
9. पंचाल | अहिच्छत्र, कांपिल्य | उत्तर प्रदेश |
10. शूरसेन | मथुरा | उत्तर प्रदेश |
11. अस्सक (अश्मक) | पोटलि/पैठन | महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश |
12. अवंति | उज्जैन, महिष्मती | मध्य प्रदेश |
13. गांधार | तक्षशिला | पाकिस्तान (पेशावर क्षेत्र) |
14. कम्बोज | राजपुर | अफगानिस्तान और पाकिस्तान का क्षेत्र |
15. चेदी | शुक्तिमती | बुंदेलखंड (मध्य प्रदेश) |
16. मत्स्य | विराटनगर | राजस्थान और अलवर क्षेत्र |
महाजनपदों को मुख्यतः दो प्रकार में विभाजित किया गया है:
महाजनपदों ने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:
महाजनपद काल ने भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था और प्रशासन के विकास को दिशा दी। यह काल भारत की ऐतिहासिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है।
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